खेती किसानीः सरयू किनारे धान की फसल से होने लगा मोहभंग
बेल्थरारोड की खेती अब गेहूं और मोटे अनाज के लिए मुफीद
बलियाः सरयू किनारे बसे बेल्थरारोड के किसानों का धान की फसल से अब मोहभंग होने लगा है क्योंकि पिछले करीब पांच वर्ष से लगातार मौसम की बेरुखी के कारण यहां धान की फसलों ने किसानों को खुब रुलाया है। कभी अतिवृष्टि, कभी बाढ़ तो कभी सूखा और कभी बेमौसम बारिश के कारण साल दर साल धान की फसले बर्बाद होती गई। जबकि धान की अपेक्षा गेहूं की फसल से किसानों को अच्छा लाभ मिलता रहा है। जिसके कारण किसान अब मानने लगे है कि यहां का भौगोलिक वातावरण अब धान के अनुकूल नहीं रहा। ऐसे में गेहूं की खेती के तुरंत बाद के फसल को लेकर किसान अभी से चिंतित है। जिसके कारण किसान फिर से मोटे अनाज और पुरानी क्षेत्रीय पारंपरिक फसलों की खेती करने के प्रति जागरुक होने लगे है।
70 के दशक तक गेहूं संग अरहर और गन्ना की होती रही है खेती
सरयू किनारे बसे बेल्थरारोड के इलाके में 70 के दशक तक गेहूं के साथ अरहर और गन्ना, चना, ज्वार बाजरा की खेती भरपूर होती रही है लेकिन 1975 के बाद यहां दोहरीघाट सहायक परियोजना के तहत तुर्तीपार डीएसपी हेड नहर बनने से चकबंदी में अधिकांश किसानों की भूमि का दायरा बदल गया और नहर से बेहिसाब पानी मिलने की उम्मीद में लोगों ने गेहूं के साथ धान की फसल पर निर्भरता दिखाने लगे लेकिन निरंतर धान के प्रतिकूल मानसून होने के कारण यहां का किसान निरंतर नुकसान उठा रहे है। जिसके कारण अब फिर से धान की खेती से किसान तौबा कर रहे है और फिर से पुरानी खेती यानि गन्ना, गेहूं, अरहर, मटर, चना, सावा, कोदो, ज्वार, बाजरा की तरफ लौटने को लगभग तैयार है। लेकिन किसानों में जागरुकता और भरोसे की कमी दिख रही है हालांकि धान के नुकसान की भरपाई के लिए किसानों के पास पुरानी खेती के अलावा कोई विकल्प भी नहीं रह गया है।
जानकारी के अभाव में खेती में हो रहा किसानों का नुकसान
– सोना उगलने वाले खेतों में खेती किसानी से कभी भी नुकसान नहीं हो सकता। लेकिन इसके लिए उन्हें नई कृषि जानकारी और प्लानिंग के साथ खेती करना होगा। किसानों को अपने क्षेत्र के भौगोलिक स्थिति के अनुसार ही खेती करना चाहिए और नए तकनीक का प्रयोग करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए। वे स्वयं अपने क्षेत्र में गैर प्रांत से उत्तम किस्म के बीजों से खरबूज, तरबूज, टमाटर और सब्जियों की जैविक खेती का प्रयोग कर चुका हूं। किसानों को अपने फसल को समय पर सही मंडी तक भी पहुंचाना चाहिए ताकि उसका लाभ उन्हें मिल सके। – आलोक सिंह, ब्लाक प्रमुख सीयर
कोरोनाकाल के कारण केला की खेती का प्रयोग हो गया फेल
सरयू किनारे के इलाकों में धान की फसल के लिए किसान मानसून पर ही पूरी तरह से निर्भर है। जिसके कारण लगातार उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है। जबकि गेहूं की फसल को कम पानी चाहिए। ऐसे में यहां के पुराने पारंपरिक फसलों की खेती ही एकमात्र विकल्प है। हालांकि इसके विपरित ससना बहादुरपुर से पश्चिम के किसान पूरी तरह से ट्यूबेल के भरोसे ही खेती कर पाते है। वे स्वयं 20 बिगहा में गेहूं की फसल लगाएं है और पिछले कई वर्ष तक 10 बिगहा में धान के बजाएं केला की खेती में पसीना बहा चुके है। जिसमें वे फायदे में भी रहे लेकिन कोरोनाकाल के कारण उनका यह प्रयोग विफल हो गया। – रमाशंकर यादव उर्फ बाउल, युवा किसान, ग्राम ससना बहादुरपुर
खेती में नुकसान से बचने के लिए धान के बजाएं मोटे अनाज की करेंगे खेती
धान की खेती में लगातार हो रहे नुकसान से बचने के लिए फिर से बेल्थरारोड के इलाकाई किसानों को मोटे अनाज की खेती करनी चाहिए। कम पानी के साथ होने वाली खेती के कारण यहां 1975 से पूर्व तक अरहर, गन्ना, बाजरा, मक्का, मटर, चना और सावा आदि का ही खेती होता रहा है। जिसमें नुकसान नहीं होना है। वे स्वयं धान से हो रहे नुकसान से बचने के लिए गेहूं के तुरंत बाद धान के बजाएं पिछले चार वर्ष से मक्का की खेती कर चुके है। इसमें अन्य किसानों का भी साथ मिले तो यह पूरा इलाका फिर से गेहूं, सरसों और मक्का के लिए अपनी पहचान बना सकता है। – रामवृक्ष यादव, वरिष्ठ किसान और पूर्व प्रधान हल्दीरामपुर
मोटा अनाज की बढ़ी है मांग, सरकार भी दे रही साथ
कोरोनाकाल के बाद से ही स्वास्थ्य को लेकर जागरुक हुए नए कृषि बाजार में मोटे अनाज की मांग बढ़ी है। सरकार भी इसे लेकर बढ़ावा दे रही है। ऐसे में किसानों को इस पर विशेष ध्यान देकर बेल्थरारोड के इलाके में मोटा अनाज के प्रति गंभीरता से खेती करना चाहिए।- अशोक सिंह, किसान, ग्राम राजपुर
किसानों के देश में किसानों के हालात पर सरकार को काम करने की जरुरत है और किसानों को भी बदले परिवेश के अनुसार खुद को अपडेट कर कृषि के पारंपरिक ट्रेंड को बदलने की जरुरत है। पंजाब जैसे राज्य से सीख लेते हुए यूपी के किसानों को भी नए प्रयोग करने चाहिए। धान से नुकसान का मुख्य कारण जल प्रबंधन है। सरकार इस पर गंभीर भी है। इसक लिए किसानों को टपक विधि या फव्वारा सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए। सरयू किनारे का इलाका सब्जी की खेती के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी और अच्छी होती है और इसी पर विशेष फोकस करना चाहिए। किसान धान की खेती में उलझने के बजाएं मूल्यवान सब्जी की खेती कर सकते है। जिससे पानी की बचत, फसल विभिधिकरण और नई तकनीक का प्रयोग से किसानों का नुकसान का भय खत्म हो जायेगा। – कल्याण सिंह, कृषि शोध छात्र
इनपुटः
सीयर ब्लाक की स्थापना – 01 जुलाई 1957
जनसंख्याः पुरुष- 119181, महिला- 116820, टोटल- 236001
कुल न्याय पंचायत- 15, ग्रामपंचायत- 94, राजस्व गांवों की संख्या 173
आबाद गांवों की संख्या 159, गैर आबाद गांव- 14
सीयर ब्लाक में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल – 22843 हेक्टेयर
कृषि योग्य बंजर भूमि- 105 हेक्टेयर
वर्तमान परती भूमिम 437 हेक्टेयर
ऊसर एवं कृषि की अयोग्य भूमि- 233 हेक्टेयर
कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि- 233 हेक्टेयर
कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि- 3018 हेक्टेयर
शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल – 18619 हेक्टेयर
एक बार से अधिक बोया गया क्षेत्रफल – 8095 हेक्टेयर
स्कल बोया गया क्षेत्रफल- 26714 हेक्टेयर
रबी फसल – 14917
खरीफ- 11374
शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल- 18216