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भीतरघात और अंतर्कलह से घिरी पार्टियों के लिए से मुश्किलभरा है मिशन 2024

सपा और भाजपा के लिए फजीहत है गुटबाजी से निपटना

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R News Manch

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बलियाः मिशन 2024 के तहत सभी राजनीतिक दलों ने राजनीतिक घेराबंदी शुरु कर दिया है। लेकिन यूपी में हुए पिछले विधानसभा और निकाय चुनाव से साफ हो गया है कि पूर्वांचल में बड़ी पार्टियों को सबसे ज्यादा खतरा पार्टी में चल रहे भीतरघात और अंतर्कलह से है। विशेषकर सपा और भाजपा में चल रही खेमेबंदी से मिशन 2024 की इनकी राह मुश्किल दिख रही है। विगत 2022 के विधानसभा चुनाव और 2023 के निकाय चुनाव के दौरान विशेषकर बलिया जनपद में भाजपा और सपा के बीच गुटबाजी स्पष्ट देखने को मिला। जहां अपने ही पार्टी के घोषित प्रत्याशियों के खिलाफ खेमेबंदी और भीतरघात का खेल खुब चला। ऐसे में मिशन 2024 के लिए दोनों ही दलों को सबसे पहले अपने पार्टी के अंदर चल रहे अंतर्कलह को दूर करने पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। अंदरखाने में इसे लेकर उच्चस्तरीय मंथन जारी है। कहीं कार्रवाई का दंडा चलाया जा रहा है तो कहीं रुठों को मनाने की कोशिश हो रही है।
पार्टी के अंदर जारी अंतर्कलह के कारण ही विगत विधानसभा चुनाव में बलिया में बीजेपी को बैरिया, बेल्थरारोड, फेफना और सिकंदरपुर विधानसभा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में कई बागियों ने पार्टी के खिलाफ ताल ठोंक दिया था। जबकि निकाय चुनाव में सपा की गुटबाजी सतह पर आ गई। जिसके कारण बलिया नगरपालिका समेत कई नगरपंचायत में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। सपा को सिर्फ नगरा नगरपंचायत से ही संतोष करना पड़ा।
मिशन 2024 के तहत पांच विधानसभा सीट वाले सलेमपुर लोकसभा सीट की बात करें तो बेल्थरारोड, सिकंदरपुर और बांसडीह तीनों विधानसभा में भाजपा के लिए राह मुश्किल है। बेल्थरारोड और सिकंदरपुर में गैर भाजपा के विधायक है। जबकि बांसडीह में भाजपा के सहयोगी दल से केतकी सिंह विधायक है। विगत 2019 के लोकसभा चुनाव में सलेमपुर सीट से भाजपा को जीत भले ही मिल गई लेकिन भाजपा को बेल्थरारोड विधानसभा में काफी निराशा मिला था। आपसी गुटबाजी के कारण ही बेल्थरारोड में भाजपा काफी कमजोर नजर आने लगी है। ब्लाक प्रमुख चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव भी भाजपा यहां करीब पांच हजार मतों से हार गई। वहीं निकाय चुनाव में भी भाजपा को भीतरघात से काफी नुकसान पहुंचा और कम वोटों से यहां भाजपा की जीत हो सकी। अब पार्टी का पूरा फोकस लोकसभा चुनाव पर है। ऐसे में भाजपा और सपा दोनों दलों के लिए सबसे बड़ी फजीहत तो पार्टी में चल रहे अंतर्कलह की खाई को पाटना हो गई है।

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