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बाहरी कह कर सबसे ज्यादा नीचता एवं घृणा का भाव दिखाने वाला समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता!

आम व्यक्ति से लेकर माननीय तक को झेलना पड़ता है भेदभाव एवं उपेक्षा

R News Manch

बाहरी कह कर सबसे ज्यादा नीचता एवं घृणा का भाव दिखाने वाला समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता!

आम व्यक्ति से लेकर माननीय तक को झेलना पड़ता है भेदभाव एवं उपेक्षा

यूपी: उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में इन दिनों बाहरी कहकर विरोध का चलन तेज हो गया है। ऐसी सामाजिक उपेक्षा का दंश आम आदमी से लेकर माननीय तक को झेलना पड़ रहा है। कुछ दिनों पूर्व बलिया से भाजपा के दिग्गज नेता और दमदार मंत्री दयाशंकर सिंह को बाहरी कहकर एक दिग्गज विधायक के समर्थकों ने जमकर हमला किया। यह मामला अभी चर्चा में ही था कि बेल्थरारोड के विधायक को भी इसका तंज झेलना पड़ा। 

देवरिया और बलिया जनपद के 7 विधानसभा वाले सलेमपुर लोकसभा चुनाव में अब तक ऐसा स्वर अक्सर लोकसभा प्रत्याशी को लेकर उठता रहा है। लेकिन पहली बार बेल्थरारोड के वर्तमान विधायक हंसू राम को भी इसका तंज झेलना पड़ा। जिला पंचायत सदस्य बनने की लालसा में एक भावी प्रत्याशी ने इसी भाव से वर्तमान विधायक का विरोध किया और उसने फेसबुक पर एक पोस्ट डाला और कह डाला कि आप बाहरी है, होश में रहिए। 

इससे पहले एक सपा नेता राजेश पासवान को भी ऐसा तंज झेलना पड़ा था, उन्हें चुनाव नहीं लड़ने देने की भी धमकी दी गई। हालांकि इस मामले में मुकदमा भी दर्ज हुआ है।

इससे पहले एक पत्रकार विजय मद्धेशिया को भी बाहरी बताकर लोग अक्सर टारगेट करते रहे हैं। 

मजे की बात यह है कि तीनों मामले में ऐसी मानसिकता का प्रदर्शन करने वाला एक ही समाज यादव बिरादरी से है। जो स्वयंभू तुर्रम खान से कम नहीं है। अब सवाल उठता है कि ऐसी मानसिकता से ये अपने यदुवंशियों का और क्षेत्र का कैसे भला करेंगे!

वैसे तो यूपी-बिहार के लोगों की फजीहत (यानी भेदभाव या उपेक्षा) मुख्य रूप से कुछ बड़े शहरों और राज्यों में देखने को मिलती है, खासकर वहां जहां बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर या नौकरीपेशा लोग इन दो राज्यों से आते हैं।

1. महाराष्ट्र (मुंबई, ठाणे, पुणे आदि):

यहाँ “भैया” शब्द को अक्सर तिरस्कार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

राजनीतिक रूप से भी कई बार यूपी-बिहार के लोगों को बाहरी कहकर टारगेट किया गया है।

कई घटनाएँ दर्ज हैं जब प्रवासियों पर हमले या आंदोलन हुए (जैसे मनसे का आंदोलन)।

 2. दिल्ली-एनसीआर:

दिल्ली में रोजगार और मजदूरी के लिए यूपी-बिहार से आने वालों की बड़ी संख्या है।

हालाँकि यहाँ हिंसा कम होती है, पर मज़ाक-उपहास (“भैया” कहकर नीचा दिखाना, लहजे पर टिप्पणी करना) आम है।

 3. गुजरात:

कुछ औद्योगिक इलाकों में स्थानीय लोगों द्वारा उत्तर भारतीय मज़दूरों पर हमलों की घटनाएँ सामने आई थीं।

हालाँकि प्रशासन ने कड़े कदम उठाए, लेकिन “बाहरियों” के प्रति संदेह की भावना अब भी कहीं-कहीं दिखती है।

 4. पंजाब-हरियाणा:

यहाँ खेत-खलिहानों में बड़ी संख्या में यूपी-बिहार के मजदूर काम करते हैं।

ज़्यादातर लोग उन्हें श्रमिक के तौर पर स्वीकारते हैं, पर सामाजिक बराबरी वहाँ भी नहीं मिलती — “मजदूर” टैग लगा रहता है।

इस आधार पर कह सकते हैं कि सबसे ज्यादा खुला विरोध महाराष्ट्र में हुआ, सबसे ज्यादा छिपा भेदभाव दिल्ली-एनसीआर में दिखता है,

और सबसे ज्यादा आर्थिक-सामाजिक निर्भरता वाले रिश्ते पंजाब-हरियाणा में हैं।


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