रसूकदारों की दबंगई: पत्रकार को कारोबार का हक नहीं!
सावधानः बेल्थरारोड में फुटकर दुकानदारों को अपना गुलाम समझते है रसूकदार

रसूकदारों की दबंगई: पत्रकार को कारोबार का हक नहीं!
सावधानः बेल्थरारोड में फुटकर दुकानदारों को अपना गुलाम समझते है रसूकदार
इनकी सहमति बिन नहीं कर सकते कारोबार!
बलियाः जनपद बलिया के बेल्थरारोड में फुटकर दुकानदारों को आज भी अपना गुलाम समझते है रसूकदार। इनकी सहमति के बिना कोई यहां अपना कारोबार चैन से नहीं कर सकता। 10 से 15 लाख एडवांस लेकर कमर्शियल कम्पलेक्स के किराया वसूली को अपना कारोबार बना चुके रसूकदार अपने गृह क्षेत्र से दिल्ली और बिहार जाकर राजनीति कर सकते है। लंबी लंबी डिंगे हाॅकते है। कोलकाता और नेपाल में जाकर ये कारोबार कर सकते है लेकिन बेल्थरारोड नगर में आकर किसी को ये कारोबार नहीं करने देंगे। क्योंकि वैश्य समाज से फुटकर दुकानदार को ये अपना गुलाम ही समझते है। जिसके कारण अपने किरायदारों का ये अक्सर सिर्फ किसी का भी विरोध कराने के लिए प्रयोग करते रहे हैं। नगर में नई एक गुमटी आवंटन को लेकर इनका अब अपना 15 लाख रुपया का नुकसान दिखने लगा है। जिसके कारण इनके द्वारा विरोध के स्वर मुखर होने लगे है। इसके लिए ये अपने किरायदारों को ही आगे कर रहे है।
राहुल मेडिकल का दर्द
– राहुल मेडिकल हाॅल के बगल में खाली स्थान को दुकान के रुप में आवंटित होने पर राहुल कुमार के विरोध का मुख्य कारण समझिए। अब तक इस खाली स्थान की तरफ अपना वेंटिलेटर निकाले है। इनके दुकान का अवैध अतिक्रमण भी पड़ोसी स्थान पर है और खाली जगह को अवैध तरीके से टेबुल रखकर ग्राहकों को बैठाने का प्रयोग करते रहे है। जिसके कारण ये इसका विरोध कर रहे है। साथ ही इन्हें भय है कि इनके पड़ोस में मेडिकल स्टोर खुल जायेगा तो इनका कारोबार प्रभावित होगा।
फजील अहमद के फ्लैट के ऑफर को ठुकराने से बिलबिला रहे है नेता जी
– खुद को बड़ा नेता बताने वाले फजील अहमद स्वयं प्रशासनिक मेहरबानी और सेटिंग व्यवस्था से कमर्शियल कम्पलेक्स चलाते है। जहां आमजन के लिए बेसिक सुविधा तक मुहैया नहीं है। किराया के रुप में मोटी रकम वसूलते है, वाहन खड़ा करने के लिए भी दबंई से पैसा वसूलते है। इसकी जांच तो होनी ही चाहिए। ये अपने किसी किरायेदार या गरीब को देखना तक नहीं चाहते। कम्पलेक्स के पास अपने ही किरायदार मो. जमशेद को वे कई वर्ष तक मुकदमा लड़वा चुके है और न्यायालय के स्टे के बावजूद रातोंरात उन्हें कब्जा करा दिया। प्रापर्टी डिलिंग में काम निकलते ही कई प्रापर्टी डिलिंग के सहयोगियों को जमकर धमकाया और बेइज्जत भी किया। ये स्वयं को कभी पत्रकार का मित्र भी बताते थे लेकिन अब जंग छेड़ चुके है। नगर पंचायत द्वारा विजय कुमार पत्रकार को गुमटी आवंटित किए जाने के बाद पत्रकार के बेल्थरारोड में आने से लेकर अच्छी जिंदगी जीने तक से अब इनकी मुश्किलें अचानक बढ़ गई है। इन्होंने पेट से इतना उल्टी किया कि राजनीति में भी इतनी नीचता देखने को कभी नहीं मिलती।
गुमटी दुकानदारों के पेट पर लात मारने की फजील की है साजिश
– नेता जी राजनीति के साथ साथ प्रापर्टी डिलर के रुप में पत्रकार के साथ डिल करने की फिराक में थे। इन्होंने पहले मेरे मकान के बदले मोटी रकम लेकर फ्लैट देने का आॅफर किया था। जिसे ठुकरा देने के बाद से ही इनके पेट की गांठ मोटी होने लगी थी। बाद में इन्होंने प्रशासन पर मोटी रकम खर्च कर अपने कम्पलैक्स के बाहर के आठ गुमटी को हटवाने के लिए प्रयास किया। इसमें पत्रकार से सहयोग भी मांगा लेकिन ऐसे घृणित कार्य में सहयोग देने से इंकार करते ही इनके मन में द्वेष और बढ़ गया। खैर, अब इन्होंने फेसबुक पर अपनी बात रखी है। मैं वैसे सोशल साइट के नकारात्मकता से दूर रहता हूं। कई लोगों के फोन आएं तो मैंने इनके बयान के कुछ अंश देखे। इनके हिसाब से पत्रकार को टूटी मड़ई में रहना चाहिए। पत्रकार को कारोबार करने का अधिकार नहीं है, पत्रकार के बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए। पत्रकार को शादी नहीं करनी चाहिए। पत्रकार को रसूकदारों की गुलामी करनी चाहिए। इतनी गंदी मानसिकता के साथ ये देश का विकास करने के लिए अपने गांव से निकल कर दिल्ली गए और बिहार से चुनाव लड़ने की ठाने थे लेकिन कहते है गंदे मानसिकता वाले का भगवान भी साथ नहीं देता। इनके मौला ने भी इनका साथ छोड़ दिया और इनके बिहार से चुनाव लड़ने की मंशा को खाक कर दिया। अब राजनीति में मिली निराशा का भड़ास ये लोकल मामले के बहाने एक पत्रकार पर निकाल रहे है।
आम जिंदगी को राजनीति का खेल समझने वाले का भी विरोध समझिए
– प्राइवेट कम्लेक्स के भरोसे रसूक की जिंदगी जीने वाले और गंवई दबंगों के भरोसे नगरीय राजनीति में भाग्य आजमाने वाले का विरोध भी समझिए। इनके पिता दो बार नगरपंचायत चेयरमैन रहे है लेकिन नगर का माहौल खराब करने को लेकर कभी इतने बदनाम नहीं रहे। लेकिन वर्तमान समय में नगरीय राजनीति की ऐसी तैसी करने वाले प्रवीण नारायण गुप्ता दूसरे के फटे में टांग पहले अड़ाते है। इनके अनुसार इनके पिता जी पश्चिम बंगाल और नेपाल में जाकर कारोबार कर सकते है लेकिन दूसरा कोई इनके मर्जी के बगैर इनके नगर में खड़ा नहीं हो सकता है। क्योंकि पूरे नगर को ये अपनी जागिर समझते है। अपने कई किरायेदार दुकानदारों को थाने तक का चक्कर लगवा चुके महोदय, पूर्व के निकाय चुनाव में एक बड़े मुसलमान चेहरे का अपने फायदे के लिए खुब प्रयोग कर चुके है और उनकी राजनीति की हत्या भी कर दिए। अब ये अपने जैसे कमर्शियल कम्लेक्स वाले फजील अहमद के साथ दोस्ती निभा रहे है। इनके लिए माहौल बना रहे है। ये अपने बिरादरी के लिए खुद को विधाता ही समझते रहे है लेकिन अपने बिरादरी वालों को कभी आगे बढ़ता तो देख ही नहीं सकते।
बहरहाल सोशल मीडिया पर अपनी विद्वता दर्शाने वालों को भले ही शासन प्रशासन पर भरोसा नहीं है लेकिन एक पत्रकार सदैव वैधानिक तरीके से ही अपना काम करता है।