अंचल नाम ही काफी है…
अंचल बिन डेढ़ दशक में कई बार राजनीतिक पायदान पर फिसली तीसरी पीढ़ी, अब नई उड़ान की मजबूत तैयारी

अंचल बिन डेढ़ दशक में कई बार राजनीतिक पायदान पर फिसली तीसरी पीढ़ी, अब नई उड़ान की मजबूत तैयारी
अंचल नाम ही काफी है…
पूर्वांचल में अंचल, नाम ही काफी है
ढाई दशक की राजनीति में 4 बार विधायक और 3 बार मंत्री रहे शारदानंद अंचल
मंत्री पुत्र जयप्रकाश अंचल ने विधायक बन बरकरार रखा अंचल की पहचान






बलिया: पूर्वांचल में समाजवादी चट्टान के रूप में चर्चित रहे शारदानंद अंचल का अब नाम ही काफी है। उनके पुत्र जयप्रकाश अंचल ने विधायक बनकर उनके नाम की गरिमा और शान को बरकरार रखा। सामान्य किसान परिवार में जन्मे और गरीबों मजलूमों की सशक्त आवाज शारदानंद अंचल, पूर्वांचल और यूपी में करीब ढाई दशक तक राजनीतिक केंद्र बिंदु रहे लेकिन सन 2010 में हमेशा के लिए सो गए। उन्होंने मरते दम तक समाजवाद का झंडा लहराया किंतु बलिया में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा न होने के कारण अचानक हार्ट अटैक से सन 2010 में महज 63 वर्ष की अवस्था में वे दुनिया को अलविदा कह गए। वे चार बार विधायक और 3 बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे।
लेकिन अंचल बिन पिछले डेढ़ दशक में पूर्वांचल में पिछड़ी जाति की जमकर दुर्दशा हुई और उनकी तीसरी पीढ़ी भी कई बार राजनीतिक पायदान पर फिसल गई लेकिन अब नई ऊर्जा के साथ मजबूत तैयारी के साथ अंचल परिवार ने उड़ान भरी है।
2 मई को शारदानंद अंचल की 15वीं पुण्यतिथि है। ऐसे में उनकी स्मृतियों को याद कर उनके समर्थक और समाजवादी नेताओं का बड़ा जमावड़ा लगना तय है। सभी के स्मृतियों में आज भी अंचल नाम का वह चट्टान जीवंत है और उनके नाम से ही क्षेत्रवासियों और समाजवादियों में जबरदस्त ऊर्जा का संचार हो जाता है।
ऐसे थे शारदानंद अंचल
शारदानंद अंचल अपने राजनीतिक जीवन में समाजवादी नेता पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह एवं राममनोहर लोहिया की राजनीति से प्रभावित रहे और स्वयं किसानों, गरीबों व बेसहारों के दर्द को देख कराह उठते थे। मानवीय संवेदना को लेकर इतने सजग थे कि लोगों की समस्या के निदान होने तक वे अपनी पूरी ताकत झोंक देते थे और गरीबों को प्रताड़ित करने वाले हर सामंती चट्टान से टकराने के लिए स्वयं मजबूत हथौड़ा बन जाते थे। छात्र जीवन से ही युवाओं के लड़ाई को भी लड़ते रहे। जिसके बाद उन्होंने अपना राजनीतिक सफर, कापरेटिव राजनीति से शुरु किया। सहकारिता आंदोलन से जुड़े तो किसानों के दर्द को राष्ट्रीय पटल तक पहुंचाया। लोकदल, जनता दल से लेकर समाजवादी पार्टी के गठन तक वे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे और बाद में सपा के जिला से लेकर प्रदेश स्तर के विभिन्न पदों पर अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। बाद में नेता जी मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में भी पार्टी को मजबूती से खड़ा किया। पश्चिम बंगाल में तो अपने नेतृत्व क्षमता से उस समय के कई दिग्गज राजनेताओं को वैचारिक रुप से सपा के झंडे तले आने को विवश कर दिया। वहीं इनके नेतृत्व में महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में तीन-चार विधायक भी सपा के खाते में आ गए। जिसके कारण वे सदैव नेता जी के विश्वासपात्र व करीबी रहे।
चार बार विधायक और 3 बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे
1985 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के कारण देशभर में कांग्रेस की जबरदस्त सहानुभूति लहर के बावजूद अपने बूते लोकदल से शारदानंद अंचल पहली बार सीयर विधानसभा से विधायक हुए। उसके बाद 1989 में जनता दल से 1993 व 2002 में सपा से विधायक बनकर चार बार सदन तक पहुंचे। इसमें वे तीन बार पीडब्ल्यूडी- बेसिक शिक्षा, पशुधन व मत्स्य एवं सहकारिता मंत्री रहे। बतौर सहाकरिता मंत्री अंचल ने जहां साधन सहकारी समितियों को दुरुस्त किया, वहीं आर्थिक पैकेज का प्लान बनाकर किसानों को भी सीधे लाभ पहुंचाया। बतौर शिक्षा मंत्री भी पूर्वांचल के ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा इंटर व डिग्री कालेज की स्थापना कराया। ताकि ग्रामीण इलाकों के प्रतिभाओं को गांव में भी उच्च शिक्षा मिल सके और हर परिवार शिक्षित बन सके। अपने कार्यकाल में उन्होंने अपने गृह क्षेत्र को तहसील का दर्जा दिलवाने के साथ ही सड़क, बिजली, पानी के साथ ही रोडवेज सुविधा, रोडवेज डीपो, मंडी व अन्य बड़ी योजनाओं को पूरा कराया। बलिया समेत पूर्वांचल के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में पीएचसी व न्यू पीएचसी की भी स्थापना कराया किंतु बलिया की क्षेत्रीय राजनीति के कारण चाहकर भी बलिया में स्वास्थ्य की कोई बेहतर सुविधा न हो सकी। 2 मई 2010 को वे सुबह ही लखनऊ से सीधे बिल्थरारोड सपा के कार्यकर्ता सम्मेलन में ही भाग लेने को पहुंचे किंतु अचानक सीने में दर्द होने के कारण कार्यक्रम स्थल से घर की ओर उन्हें ले जाया गया। समय पर आवश्यक ट्रीटमेंट न मिलने से घर पहुंचने से पहले ही उनका निधन हो गया। जिसके साथ ही समाजवाद का यह मजबूत सिपाही सदा के लिए विदा हो गया।



